मयंक अग्रवाल: भारतीय टेस्ट ओपनर की संघर्षभरी क्रिकेट यात्रा

भारतीय क्रिकेट में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से सबका ध्यान आकर्षित किया है। मयंक अग्रवाल उन्हीं खास खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने अपने दमदार खेल से एक अलग पहचान बनाई। इस लेख में हम मयंक अग्रवाल के टेस्ट करियर, उनके संघर्ष, और चयनकर्ताओं के लगातार इग्नोर किए जाने के पीछे की कहानी को समझेंगे।

मयंक अग्रवाल कर्नाटक के मशहूर ओपनिंग बल्लेबाज

शुरुआती करियर और टेस्ट क्रिकेट में धमाकेदार एंट्री

मयंक अग्रवाल का सफर हमेशा से आसान नहीं रहा। घरेलू क्रिकेट में अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने टीम इंडिया में जगह बनाई। उन्होंने 2018 में मेलबर्न टेस्ट के जरिए टेस्ट डेब्यू किया और पहली ही पारी में 76 रन की शानदार पारी खेली। यह शुरुआत उनके आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत की मिसाल थी।

उनका टेस्ट रिकॉर्ड काफी मजबूत रहा है। MP Breaking News की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मयंक अग्रवाल ने 21 टेस्ट मैचों में 1488 रन बनाए, जिसमें दो दोहरे शतक और कुल 4 शतक शामिल हैं। इतनी शानदार शुरुआत के बावजूद, चयनकर्ताओं ने उन्हें लंबे समय तक टीम से दूर रखा, जिससे उनके करियर पर सवाल खड़े हुए।

लगातार संघर्ष और चयनकर्ताओं की अनदेखी

भारतीय क्रिकेट में जब भी ओपनिंग स्लॉट के लिए खिलाड़ियों की तलाश हुई, मयंक अग्रवाल ने हर बार घरेलू क्रिकेट में खुद को साबित किया। बावजूद इसके, पिछले कुछ वर्षों में उन्हें मौका नहीं मिल सका। Zee News के एक लेख में बताया गया है कि चयनकर्ताओं ने मयंक को टीम से दूध में से मक्खी की तरह बाहर कर दिया।

एक ओर केएल राहुल और यशस्वी जायसवाल जैसे खिलाड़ियों को लगातार मौके दिए गए, वहीं मयंक को बार-बार नजरअंदाज किया गया। इसके बावजूद वे घरेलू क्रिकेट में कर्नाटक टीम की कप्तानी करते हुए शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं।

घरेलू क्रिकेट में लगातार बल्ले से जवाब

जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें ठीक से मौका नहीं मिला, वहीं मयंक अग्रवाल ने रणजी ट्रॉफी और अन्य घरेलू टूर्नामेंट्स में शानदार बल्लेबाजी जारी रखी। ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में अपनी टीम को जीत दिलाई। उनका जुझारूपन और नेतृत्व क्षमता घरेलू क्रिकेट में कई युवाओं के लिए मिसाल बनी हुई है।

मयंक अग्रवाल की यात्रा से सबक

मयंक अग्रवाल की कहानी हर उस खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों में हार नहीं मानता। उनके जैसे खिलाड़ियों की मेहनत, धैर्य और जज्बा भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकता है।

अगर भारतीय टीम का सेलेक्शन लगातार पारदर्शी और प्रदर्शन आधारित रहे, तो मयंक जैसे खिलाड़ियों को जरूर फिर से निखरने का मौका मिलेगा।

निष्कर्ष

मयंक अग्रवाल की क्रिकेट यात्रा प्रेरणादायक है। विश्वास और समर्पण से वे लगातार खुद को साबित करते रहे हैं। उम्मीद है कि चयनकर्ता भविष्य में उनके प्रदर्शन का सम्मान करते हुए दोबारा टीम इंडिया में खेलने का मौका देंगे। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय जरूर साझा करें और यहां या यह रिपोर्ट से और जानकारी प्राप्त करें।